मनोरंजक कथाएँ >> तोते की कहानी तोते की कहानीरबीन्द्रनाथ टैगोर
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रवीन्द्र साहित्यमाला का कहानी संग्रह तोते की कहानी ......
Tote Ki Kahani -A Hindi Book by Ravindranath Thakur
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
तोते की कहानी
एक राजा था। उसके यहां था एक तोता। लेकिन वह तोता बहुत मूर्ख था। खूब उछलता था, फुदकता था, उड़ता था; लेकिन यह नहीं जानता था कि तहजीब किसे कहते हैं।
राजा बोला, ‘‘तोता किसी काम का नहीं। इससे फायदा तो कुछ नहीं, लेकिन नुकसान जरूर है। बाग के फल खा जाता है, जिससे राजामण्डी में फलों का टोटा पड़ा जाता है।’’‘ उसने मंत्री को बुलाया। मंत्री आया। राजा ने हुक्म दिया, ‘‘इस तोते को पढ़ाओ, जिससे इसे तहजीब आये।’’
तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला।
पण्डितों की बैठक हुई। उन्होंने सोचा—‘‘तोते के अनपढ़ रहने का कारण क्या है ?’’ बहुत विचार हुआ।
नतीजा निकला कि तोता अपना घोंसला साधारण घास-फूंस से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती इसलिए सबसे पहले तो यह जरूरी है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाये।
राज-पण्डितों को भारी दक्षिणा मिली और वे खुश होकर अपने-अपने घर गये।
सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट गया। पिंजरा ऐसा सुंदर बना कि उसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग टूट पड़े। देखने वाले कहने लगे, ‘इस तोते का भी क्या नसीब है !’’
सुनार को थैलियां भर-भरकर इनाम मिला।
पंडित जी तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। बोले,‘‘’यह काम थोथी पोथियों का नहीं है।
राजा के भानजे ने सुना उसने उसी समय पोथी लिखने वालों को बुलवाया। पोथियों की नकल होने लगी। नकलों और नकलों की नकलों के ढेर लग गये। जिसने भी देखा, उसने यही कहा,‘‘शाबाश ! इतनी विद्या को धरने की जगह भी नहीं रहेगी।
राजा बोला, ‘‘तोता किसी काम का नहीं। इससे फायदा तो कुछ नहीं, लेकिन नुकसान जरूर है। बाग के फल खा जाता है, जिससे राजामण्डी में फलों का टोटा पड़ा जाता है।’’‘ उसने मंत्री को बुलाया। मंत्री आया। राजा ने हुक्म दिया, ‘‘इस तोते को पढ़ाओ, जिससे इसे तहजीब आये।’’
तोते को शिक्षा देने का काम राजा के भानजे को मिला।
पण्डितों की बैठक हुई। उन्होंने सोचा—‘‘तोते के अनपढ़ रहने का कारण क्या है ?’’ बहुत विचार हुआ।
नतीजा निकला कि तोता अपना घोंसला साधारण घास-फूंस से बनाता है। ऐसे आवास में विद्या नहीं आती इसलिए सबसे पहले तो यह जरूरी है कि इसके लिए कोई बढ़िया-सा पिंजरा बना दिया जाये।
राज-पण्डितों को भारी दक्षिणा मिली और वे खुश होकर अपने-अपने घर गये।
सुनार बुलाया गया। वह सोने का पिंजरा तैयार करने में जुट गया। पिंजरा ऐसा सुंदर बना कि उसे देखने के लिए देश-विदेश के लोग टूट पड़े। देखने वाले कहने लगे, ‘इस तोते का भी क्या नसीब है !’’
सुनार को थैलियां भर-भरकर इनाम मिला।
पंडित जी तोते को विद्या पढ़ाने बैठे। बोले,‘‘’यह काम थोथी पोथियों का नहीं है।
राजा के भानजे ने सुना उसने उसी समय पोथी लिखने वालों को बुलवाया। पोथियों की नकल होने लगी। नकलों और नकलों की नकलों के ढेर लग गये। जिसने भी देखा, उसने यही कहा,‘‘शाबाश ! इतनी विद्या को धरने की जगह भी नहीं रहेगी।
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